November 18, 2010

ज़िन्दगी का स्वाद





वो भी क्या दिन थे

जब
हम चाँद का स्वाद चखा करते थे

कभी
खीर में देती थी माँ

कभी
दूध में घोल देती थी

कभी
रोटी के टुकड़े में
दबा
कर
खिला दिया करती
तब
चाँद बहुत मीठा होता था

अब
तो बहुत खारी लगती हैं रातें

जब
आँखों में सारी रात

जगती
हैं रातें

दिन
भी कितने
फीके लगते हैं अब
बड़े
होने पर क्यूँ

बेस्वाद
हो जाती है

ज़िन्दगी

-
शेफाली

24 comments:

  1. रुमान और हकीकत का फर्क करती रचना !

    ReplyDelete
  2. बड़े होने पर क्यूँ
    बेस्वाद हो जाती है ....
    bohot hi pyari kavita... bachpan me lagta hai kab bade honge par bade hokar sab kuch beswad sa lagta hai

    ReplyDelete
  3. सही कहा शेफ़ाली , चँदा मामा दूर के , पूआ पकाए गूड़ के … और न जाने क्या क्या कल्पनाओं ने हम को मीठे मीठे स्वाद चखाए हैं।अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"

    ReplyDelete
  4. shefali ji vatvriksh ke liye aapki rachna chahiye rasprabha@gmail.com per......is blog ki jitni tareef karun kam hogi

    ReplyDelete
  5. "जब हम चाँद का स्वाद चखा करते थे
    कभी खीर में देती थी माँ
    कभी दूध में घोल देती थी
    कभी रोटी के टुकड़े में
    दबा कर खिला दिया करती
    तब चाँद बहुत मीठा होता था"

    गागर में सागर. बेमिशाल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  6. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए आपको शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  7. बेहतरीन अभिव्यक्ति..... ख्यालों की दुनिया से कागज़ पर आई उम्दा रचना ..... खूब

    ReplyDelete
  8. बड़े होने पर क्यूँ
    बेस्वाद हो जाती है
    ज़िन्दगी
    मुझे लगता है संसार का आवरण हमारी चंचलता को लील लेता है ..और जिन्दगी को बोझिल बना देता है ...शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  9. very good blog 'test of life" rajendra kashayap

    ReplyDelete
  10. http://urvija.parikalpnaa.com/2010/12/blog-post_27.html

    ReplyDelete
  11. वाह वाह! सुन्दर वर्णन सच्चाई का..
    अच्छा लगा..

    आभार

    ReplyDelete
  12. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  13. i don't ve words to express my view bt you jst amazed me by all your stupendous fantastic and mesmerizing words..& u compiled them so gracefully...gud going yr i've gone throgh all ur "shabdh" & they are just amazing :)all the best for the next

    ReplyDelete
  14. जिंदगी किसी है ये पहेली हाय कभी लगे खीर तो कभी लगे एम टी आर का उपमा

    ReplyDelete
  15. शेफाली जी अच्छी प्रस्तुति है आपकी.
    संगीता जी कि हलचल में सजी और भी अच्छी लगी.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

    ReplyDelete
  16. sach kaha aapne...bachpan bachpan kyon na rahta kyon badta jata hai..
    welcome to my blog :)

    ReplyDelete
  17. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  18. दुनिया दारी सारा स्वाद हर जो लेती है....:))
    अच्छी रचना... सार्थक प्रश्न....
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  19. बहुत खूब शेफाली जी।

    सादर

    ReplyDelete
  20. सुंदर रचना उम्दा पोस्ट ,....
    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
    चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
    छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
    अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,


    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

    ReplyDelete

आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे