November 28, 2011

बाबुल



बाबुल तेरी बिटिया यही आस लगाए
अबके बरस बाबुल सावन में लीजो बुलाये
अम्मा के हाथों की रोटियां, गरासी दीजो खिलाये
मुंडेर की नन्ही खटिया पर थपकी दीजो सुलाए
बाबुल बरसों बीत गए तेरी पेंग झुलाए
फिर से मेरा बचपन मुझको दीजो लौटाए
अबकी बरस बाबुल सावन में लीजो बुलाये

September 23, 2011

कैसी रचनाएँ















तुम कवितायें कैसे लिखते हो
कहाँ से तोड़ लाते हो
ये कलियों से महकते शब्द
कौन कुँए से भर लाते हो
एहसास की गगरी
और पूरी गागर उड़ेल कर
भर देते हो रचनाओं में रस
मुझको वो बगिया दिखा दो
उस कुँए से पहचान करा दो
मैं भी हवा में उड़ना चाहती हूँ
पहाड़ नदी झरनों से
बातें करना चाहती हूँ
मैं भी तुम्हारी ही तरह
रिश्ते गढ़ना चाहती हूँ



September 07, 2011

अधूरे सपने




सुनो,
आज सफाई करते हुए

मुझे कुछ पुराने

सपने मिले

कुछ आधे अधूरे
कुछ अनछुए से कोरे

देखो,
रखे रखे

कितनी धूल

जम गयी है इनमे

आओ,
इस धूल को

झाड पोंछ कर
इन सपनो को

फिर से आँखों में सजाएँ

September 04, 2011

मुखौटा





क्या करूँ इन संवेदनाओं का
क्या होगा
एन एहसासों से
जिनसे चुभन बढती है
अकेलेपन का अँधेरा
फैल जाता है
जीवन का खालीपन
और गहराता है
लोग सांत्वना के
दो बोल बोलते हैं
और हार का एहसास
बढ़ा देते हैं
क्यूँ न,
सुनहला, रत्न जडित
एक मुखौटा ओढ़ लूँ
सुना है इस दुनिया में
मुखौटे वालों की
इज्ज़त बहुत है

August 06, 2011

यादों की थकान


मैं यादों के पन्ने पलट रही थी
हर पन्ने पर एक अलग कहानी
ना जाने कहाँ से पलकों पे
एक कतरा आंसू आ बैठा
तब ये एहसास हुआ
यादें मेरा दम घोंट रही थीं
और अँधेरा छाया था
उसी पल यादों की किताब बंद कर दी
हाँ
पर यादों की थकान
अभी उतरी नहीं

July 31, 2011

बेड़ियाँ




अंतर्मन के किसी कोने में
एक आत्मा उर भी है
जो आकाश की असीमित
उचाईयों को छूना चाहती है
जो पंख लगा कर उड़ने को व्याकुल है
प्यार की गहराईयों में उतर कर
पवित्रता के मोती चुनना चाहती है
जो जीवन की गंगा संग
मंत्रमुग्ध हो बहना चाहती है
फिर क्यूँ नहीं उसे उड़ने दिया जाता
क्यों नहीं प्यार की गंगा में बहने दिया जाता
क्यूंकि शायद यही दुनिया की रस्मे हैं
हर आत्मा को बेड़ियों में जकड दिया जाता है
और तब तक तद्पाया जाता है
जब तक अरमानो की वो आत्मा
दम तोड़ नहीं देती
........

July 21, 2011

जानता हूँ


हाथ में डिग्री
आँखों में सपने लिए
मैं बाहर आया
तो देखा
यहाँ तो
मेरे जैसे लाखों की भीड़ है
पर विश्वास है मुझे
नहीं बनूँगा मैं
इस भीड़ का हिस्सा....

July 19, 2011



मेरे एक दोस्त ने मुझे आज कहा "शेफाली जी 'तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी,
हैरान हूँ मैं......' इन पंक्तियों को अपने अंदाज़ में पूरा कीजिये"
तो जो लिखा वो आप सब के साथ बाँट रही हूँ




तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी,
हैरान हूँ मैं
तेरी हर जिद्द पे आज
नीलाम हूँ मैं,
तू जो चाहे वही सफ़र हो मेरा
तेरी ही मंजिल के निशान हूँ मैं..............

July 13, 2011





थक कर बैठ गया है वो
रोज़ सपनो के पुर्ज्जे जोड़ता था
शायद कल की उम्मीद में
उसकी आँखों में अब भी चमक बाकी है
थका है वो पर
हरा नहीं है

July 04, 2011

सुबह का अखबार




रात की बारिश के बाद
आज सुबह बहुत सुहानी थी
रोज़ की तरह चाय के साथ
अखबार उठाया
कुछ फ़िल्मी गोस्सिप पढ़ी
बाज़ार की खबरें देखीं
खेल समाचार पढ़े
फिर बाकी अखबार पे
एक सरसरी सी निगाह डाल
उठ गए
रोज़मर्रा के कामों के लिए
कभी कभी लगता है
हम कांच के एक कमरे में
कैद हैं
यहाँ से दीखता सब कुछ है
बस नहीं सुनाई पड़ते
धमाके, चीखें और सिसकियाँ................

May 20, 2011

मेरा जहाँ


मैं जानती हूँ तुम्हारी नज़रों में
मेरी कोई पहचान नहीं
तुम्हारी
दौड़ती भागती ज़िन्दगी में
मेरी चाल बहुत धीमी है
मैं
जानती हूँ शायद कभी भी
तुम्हारे साथ नहीं चल पाऊँगी
मैं
तुम्हारे लिए एक ज़र्रा

एक
कतरे से ज्यादा
कुछ भी नहीं
पर
आ के देखो

यहाँ
मेरा अपना आसमान है

एक
टुकड़ा ज़मीन मेरी है

यहाँ
के पेड पौधे
मुझे पहचानते हैं
यहाँ
अब भी बारिश होती है

यहाँ के फूलों में खुशबू अब भी बाकी है
यहाँ
सूरज भी मेरा सानी है
हाँ तुम्हारी दुनिया से
बस
एक कदम दूर

मेरा
अपना एक जहाँ है.............


May 12, 2011

रिश्ता





एक सुन्दर चिकनी माटी सा रिश्ता
विश्वास के चकले पर जब सजाया जाता है
पल पल कुम्हार संस्कार के पानी संग
उसे
एक सचल आकार देता है
कुछ रिश्ते टूटते भी हैं
कुछ
यूँ ही चटक जाते हैं
कुछ अकार ही नहीं ले पाते
और माटी में ही विलीन हो जाते हैं,
बस कुछ ही विरले होते हैं
जो
वक़्त की आग में पकते हैं
मज़बूत हो जाते हैं
और
आने वाले हर पल को
सुवासित करते हैं
- शेफाली

March 31, 2011


पतंग


कलम
की डोर थाम
जब कल्पनाएँ उडती हैं
तो शब्दों की हवाएं
उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
उठाती हैं
और अंततः
कविताओं के आसमान से
मिलाती हैं

कॉफी



वो एक कप कॉफी आज भी याद है मुझे
तुमने पूछा था " कॉफी पीतीं हैं आप "
तब से अब तक कुछ भी तो नहीं बदला

वो कॉफी शॉप आज भी वहीँ हैं

वो कॉर्नर वाली टेबल

भी अपनी जगह पर है

अक्सर वहां जाकर

पीती हूँ तुम्हारी फेवरेट

केपिचिनो

दो चम्मच चीनी के साथ
कुछ भी तो नहीं बदला

न कॉफी शॉप, न कॉफी का स्वाद

बस नहीं है तो

दो चम्मच चीनी की मिठास
और तुम


January 19, 2011

रिश्ता


अजीब रिश्ता था उसका मेरा
ना वादा था ना कसम थी कोई
शायद एक रस्म थी हममे
मिलना बिछड़ना बिछड़ कर मिलना
सालों ये सिलसिला चलता रहा हममे