March 31, 2011


पतंग


कलम
की डोर थाम
जब कल्पनाएँ उडती हैं
तो शब्दों की हवाएं
उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
उठाती हैं
और अंततः
कविताओं के आसमान से
मिलाती हैं

कॉफी



वो एक कप कॉफी आज भी याद है मुझे
तुमने पूछा था " कॉफी पीतीं हैं आप "
तब से अब तक कुछ भी तो नहीं बदला

वो कॉफी शॉप आज भी वहीँ हैं

वो कॉर्नर वाली टेबल

भी अपनी जगह पर है

अक्सर वहां जाकर

पीती हूँ तुम्हारी फेवरेट

केपिचिनो

दो चम्मच चीनी के साथ
कुछ भी तो नहीं बदला

न कॉफी शॉप, न कॉफी का स्वाद

बस नहीं है तो

दो चम्मच चीनी की मिठास
और तुम