September 23, 2011

कैसी रचनाएँ















तुम कवितायें कैसे लिखते हो
कहाँ से तोड़ लाते हो
ये कलियों से महकते शब्द
कौन कुँए से भर लाते हो
एहसास की गगरी
और पूरी गागर उड़ेल कर
भर देते हो रचनाओं में रस
मुझको वो बगिया दिखा दो
उस कुँए से पहचान करा दो
मैं भी हवा में उड़ना चाहती हूँ
पहाड़ नदी झरनों से
बातें करना चाहती हूँ
मैं भी तुम्हारी ही तरह
रिश्ते गढ़ना चाहती हूँ



September 07, 2011

अधूरे सपने




सुनो,
आज सफाई करते हुए

मुझे कुछ पुराने

सपने मिले

कुछ आधे अधूरे
कुछ अनछुए से कोरे

देखो,
रखे रखे

कितनी धूल

जम गयी है इनमे

आओ,
इस धूल को

झाड पोंछ कर
इन सपनो को

फिर से आँखों में सजाएँ

September 04, 2011

मुखौटा





क्या करूँ इन संवेदनाओं का
क्या होगा
एन एहसासों से
जिनसे चुभन बढती है
अकेलेपन का अँधेरा
फैल जाता है
जीवन का खालीपन
और गहराता है
लोग सांत्वना के
दो बोल बोलते हैं
और हार का एहसास
बढ़ा देते हैं
क्यूँ न,
सुनहला, रत्न जडित
एक मुखौटा ओढ़ लूँ
सुना है इस दुनिया में
मुखौटे वालों की
इज्ज़त बहुत है