
मैं जानती हूँ तुम्हारी नज़रों में
मेरी कोई पहचान नहीं
तुम्हारी दौड़ती भागती ज़िन्दगी में
मेरी चाल बहुत धीमी है
मैं जानती हूँ शायद कभी भी
तुम्हारे साथ नहीं चल पाऊँगी
मैं तुम्हारे लिए एक ज़र्रा
एक कतरे से ज्यादा कुछ भी नहीं
पर आ के देखो
यहाँ मेरा अपना आसमान है
एक टुकड़ा ज़मीन मेरी है
यहाँ के पेड पौधे मुझे पहचानते हैं
यहाँ अब भी बारिश होती है
यहाँ के फूलों में खुशबू अब भी बाकी है
यहाँ सूरज भी मेरा सानी है
हाँ तुम्हारी दुनिया से
बस एक कदम दूर
मेरा अपना एक जहाँ है.............
मेरी कोई पहचान नहीं
तुम्हारी दौड़ती भागती ज़िन्दगी में
मेरी चाल बहुत धीमी है
मैं जानती हूँ शायद कभी भी
तुम्हारे साथ नहीं चल पाऊँगी
मैं तुम्हारे लिए एक ज़र्रा
एक कतरे से ज्यादा कुछ भी नहीं
पर आ के देखो
यहाँ मेरा अपना आसमान है
एक टुकड़ा ज़मीन मेरी है
यहाँ के पेड पौधे मुझे पहचानते हैं
यहाँ अब भी बारिश होती है
यहाँ के फूलों में खुशबू अब भी बाकी है
यहाँ सूरज भी मेरा सानी है
हाँ तुम्हारी दुनिया से
बस एक कदम दूर
मेरा अपना एक जहाँ है.............
मैं जानती हूँ तुम्हारी नज़रों में
ReplyDeleteमेरी कोई पहचान नहीं
तुम्हारी दौड़ती भागती ज़िन्दगी में
मेरी चाल बहुत धीमी है
मैं जानती हूँ शायद कभी भी
तुम्हारे साथ नहीं चल पाऊँगी
मैं तुम्हारे लिए एक ज़र्रा
एक कतरे से ज्यादा कुछ भी नहीं
पर आ के देखो
यहाँ मेरा अपना आसमान है ... ab aur kya chahiye
thanks di
ReplyDeletehaan mera apna ek jahann hai
Shefali, bahut badhiya prastuti..aapme pratibha hai...likhti rahein.
ReplyDeleteshukriya vijay ji
ReplyDeleteसबसे पहले शिल्पी thanks that जो आपने इस तरह की रचना लिखी की पढ़ने वाला उसी में खो कर मंत्र मुग्ध हो जाए! i hope that की तुम अपने friendo को भी ब्लॉग की दुनिया में लायो ताकि हिंदी ब्लोगिंग से युवा बर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा ज़ुड़ सके में भी हमेशा यही प्रयास करता रहता हू !और हा तुम्हरे ब्लॉग के बारे में एक इम्पोर्टेंट जानकारी जो तुमने इस लेख में फोटो डाली है वो धुधली है! जो इस लेख को थोड़ा सा फीका कर रहा है!यह सायद इसलिए की तुमने जो फोटो डाली है वह ही धुडली है या सायद कम फिक्सल की !
ReplyDeleteआप लोग मेरे ब्लॉग पर भी आये मेरे ब्लॉग पर आने के लिए "यहाँ क्लिक करे"
पढ़कर बहुत अच्छे खयालात आये दिमाग में..
ReplyDeleteज्यादा जेवराती कविता नहीं है पर अपना दम पूरा दिखाती है.. सुन्दर!
सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
@upendra
ReplyDeletethanks aapka sggstion acha laga
aage dhyan rakhungi
@prateek
thanks a lot
सहज सरल भाव सम्प्रेषण .बधाई .संवाद सा तादात्मय सा स्थापित करती है यह रचना .उसी भाव भूमि पर पहुँच गया मन जहां से रचना उगी ,पनपी .
ReplyDeleteits really nice one.. ;-)
ReplyDelete@veerubhai
ReplyDeleteshukriya :)
@ sandy
:) thnks
आपकी कविताएं बहुत अच्छी और सच्ची है , बहुत देर से पढ़ रहा हूँ , दिल को छूती हुई सी है ... बधाई
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
shukriya :)
ReplyDeleteshukriya :)
ReplyDeletemasoomiyat, bhavukta ke sath sath atmvishvas aur khud ko pyar karne wali abhivyakti...itni sunder rachna ke liye sadhuvad....
ReplyDeleteshukriya roli ji
ReplyDeleteकविता के बिम्ब उसे वैयक्तिक प्रेम में मिलकर 'हम' हुए 'मैं और तुम' के 'तुम' के बीच 'पर्सनल स्पेस' की स्पर्धा से आगे ले जाते हैं ,
ReplyDeleteकविता पुरुष प्रधान समाज को वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्तर पर 'आज़ाद होती औरत' का संबोधन हो गयी है.
Behad khubsurat.. ek duje se dur.. . ek duje ka ek jaha bhi ho.... khud ki jami ho.. khud ka ek aasmaa bhi ho..
ReplyDeleteBehad acchi lagi rachna....