July 31, 2011

बेड़ियाँ




अंतर्मन के किसी कोने में
एक आत्मा उर भी है
जो आकाश की असीमित
उचाईयों को छूना चाहती है
जो पंख लगा कर उड़ने को व्याकुल है
प्यार की गहराईयों में उतर कर
पवित्रता के मोती चुनना चाहती है
जो जीवन की गंगा संग
मंत्रमुग्ध हो बहना चाहती है
फिर क्यूँ नहीं उसे उड़ने दिया जाता
क्यों नहीं प्यार की गंगा में बहने दिया जाता
क्यूंकि शायद यही दुनिया की रस्मे हैं
हर आत्मा को बेड़ियों में जकड दिया जाता है
और तब तक तद्पाया जाता है
जब तक अरमानो की वो आत्मा
दम तोड़ नहीं देती
........

July 21, 2011

जानता हूँ


हाथ में डिग्री
आँखों में सपने लिए
मैं बाहर आया
तो देखा
यहाँ तो
मेरे जैसे लाखों की भीड़ है
पर विश्वास है मुझे
नहीं बनूँगा मैं
इस भीड़ का हिस्सा....

July 19, 2011



मेरे एक दोस्त ने मुझे आज कहा "शेफाली जी 'तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी,
हैरान हूँ मैं......' इन पंक्तियों को अपने अंदाज़ में पूरा कीजिये"
तो जो लिखा वो आप सब के साथ बाँट रही हूँ




तुझसे नाराज़ नहीं जिंदगी,
हैरान हूँ मैं
तेरी हर जिद्द पे आज
नीलाम हूँ मैं,
तू जो चाहे वही सफ़र हो मेरा
तेरी ही मंजिल के निशान हूँ मैं..............

July 13, 2011





थक कर बैठ गया है वो
रोज़ सपनो के पुर्ज्जे जोड़ता था
शायद कल की उम्मीद में
उसकी आँखों में अब भी चमक बाकी है
थका है वो पर
हरा नहीं है

July 04, 2011

सुबह का अखबार




रात की बारिश के बाद
आज सुबह बहुत सुहानी थी
रोज़ की तरह चाय के साथ
अखबार उठाया
कुछ फ़िल्मी गोस्सिप पढ़ी
बाज़ार की खबरें देखीं
खेल समाचार पढ़े
फिर बाकी अखबार पे
एक सरसरी सी निगाह डाल
उठ गए
रोज़मर्रा के कामों के लिए
कभी कभी लगता है
हम कांच के एक कमरे में
कैद हैं
यहाँ से दीखता सब कुछ है
बस नहीं सुनाई पड़ते
धमाके, चीखें और सिसकियाँ................