
अंतर्मन के किसी कोने में
एक आत्मा उर भी है
जो आकाश की असीमित
उचाईयों को छूना चाहती है
जो पंख लगा कर उड़ने को व्याकुल है
प्यार की गहराईयों में उतर कर
पवित्रता के मोती चुनना चाहती है
जो जीवन की गंगा संग
मंत्रमुग्ध हो बहना चाहती है
फिर क्यूँ नहीं उसे उड़ने दिया जाता
क्यों नहीं प्यार की गंगा में बहने दिया जाता
क्यूंकि शायद यही दुनिया की रस्मे हैं
हर आत्मा को बेड़ियों में जकड दिया जाता है
और तब तक तद्पाया जाता है
जब तक अरमानो की वो आत्मा
दम तोड़ नहीं देती
........
जब मेरे नये नये पँख निकले थे, माँ मुझे उड़ना सिखा रही थी, तब माँ से पुछा था , जीने के लिए उड़ना भला , या उड़ने के लिए जीना। माँ ने कहा कि, छू लो गगन की असीमित उँचाइयोँ को, और पीछा करो अपने सपनोँ का। उड़ चला हूँ मैँ, सभी रस्मोँ को तोड़ कर, इस तमन्ना को ले कर कि, आसमान मेँ मील के पत्थर लगाऊँगा, और बताऊँगा कि, इस आसमान के ऊपर और भी आसमान हैँ॥ - सुमित श्रीवास्तव
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत सुमित जी :)
ReplyDeleteआज 01- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
बहुत खूबसूरत लिखा है शेफाली....
ReplyDeleteये बंदिशें.....ये बेड़ियाँ....ये समन्दर से किनारे....आज नहीं तो कल तोड़ बैठेगा...ये बदगुमान दिल....शायद....इसी उम्मीद की सांस लेकर...लाशें भी यहाँ जिए जा रही हैं....
kumar
@संगीता दीदी
ReplyDeleteशुक्रिया मेरी कविताओं को मंच देने के लिए
@कुमार
लाशें कभी बेड़ियाँ नहीं तोडती
इसलिए अपने अन्दर जीवन का संचार बनाये रखना चाहिए
हर आत्मा को बेड़ियों में जकड दिया जाता है
ReplyDeleteऔर तब तक तद्पाया जाता है
जब तक अरमानो की वो आत्मा
दम तोड़ नहीं देती... marmik satya
सुन्दर अभिव्यक्ति शेफाली जी,
ReplyDeleteशुभकानाएं...
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ..आभार ।
ReplyDelete@ rashmi didi :)
ReplyDelete@ habib ji and sada
shukriya
@ vidhya
love everybody padh kar acha laga
अंतरात्मा की उड़ान पर मार्मिक प्रस्तुति ...सुन्दर रचना
ReplyDeleteशेफाली जी सावन के महीने में घूमते-फिरते आपके ब्लॉग पर आना हुआ. आपकी कविता और लेखनी देख कर दिल गार्डन-गार्डन हो गया. मन के भावो को बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है आप. बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल में उठने वाले भावो से कविता लिखती है और मैं गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
ReplyDeleteachhi bhaasha..behad achhis och...
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
सच्चाई से रूबरू करती रचना.लोग पहले पंखों के उगने का बेसब्री से इन्तजार करते है,फिर बेरहमी से क़तर भी देते हैं.यही जीवन सच है.
ReplyDeleteसच्चाई से रूबरू करती रचना.लोग पहले पंखों के उगने का बेसब्री से इन्तजार करते है,फिर बेरहमी से क़तर भी देते हैं.यही जीवन सच है.
ReplyDeletewhat a deep thought...and an absolute truth...i love to read ur posts..
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति....
ReplyDeleteaap sabhi ka bahut bahut shukriya
ReplyDeletemujhe ye nazm bahut acchi lagi hai ..bahut kuch bayaan ho raha hai
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