July 31, 2011

बेड़ियाँ




अंतर्मन के किसी कोने में
एक आत्मा उर भी है
जो आकाश की असीमित
उचाईयों को छूना चाहती है
जो पंख लगा कर उड़ने को व्याकुल है
प्यार की गहराईयों में उतर कर
पवित्रता के मोती चुनना चाहती है
जो जीवन की गंगा संग
मंत्रमुग्ध हो बहना चाहती है
फिर क्यूँ नहीं उसे उड़ने दिया जाता
क्यों नहीं प्यार की गंगा में बहने दिया जाता
क्यूंकि शायद यही दुनिया की रस्मे हैं
हर आत्मा को बेड़ियों में जकड दिया जाता है
और तब तक तद्पाया जाता है
जब तक अरमानो की वो आत्मा
दम तोड़ नहीं देती
........

18 comments:

  1. जब मेरे नये नये पँख निकले थे, माँ मुझे उड़ना सिखा रही थी, तब माँ से पुछा था , जीने के लिए उड़ना भला , या उड़ने के लिए जीना। माँ ने कहा कि, छू लो गगन की असीमित उँचाइयोँ को, और पीछा करो अपने सपनोँ का। उड़ चला हूँ मैँ, सभी रस्मोँ को तोड़ कर, इस तमन्ना को ले कर कि, आसमान मेँ मील के पत्थर लगाऊँगा, और बताऊँगा कि, इस आसमान के ऊपर और भी आसमान हैँ॥ - सुमित श्रीवास्तव

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  2. बहुत ख़ूबसूरत सुमित जी :)

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  3. बहुत खूबसूरत लिखा है शेफाली....

    ये बंदिशें.....ये बेड़ियाँ....ये समन्दर से किनारे....आज नहीं तो कल तोड़ बैठेगा...ये बदगुमान दिल....शायद....इसी उम्मीद की सांस लेकर...लाशें भी यहाँ जिए जा रही हैं....

    kumar

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  4. @संगीता दीदी
    शुक्रिया मेरी कविताओं को मंच देने के लिए
    @कुमार
    लाशें कभी बेड़ियाँ नहीं तोडती
    इसलिए अपने अन्दर जीवन का संचार बनाये रखना चाहिए

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  5. हर आत्मा को बेड़ियों में जकड दिया जाता है
    और तब तक तद्पाया जाता है
    जब तक अरमानो की वो आत्मा
    दम तोड़ नहीं देती... marmik satya

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति शेफाली जी,
    शुभकानाएं...

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  7. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ..आभार ।

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  8. @ rashmi didi :)


    @ habib ji and sada
    shukriya

    @ vidhya
    love everybody padh kar acha laga

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  9. अंतरात्मा की उड़ान पर मार्मिक प्रस्तुति ...सुन्दर रचना

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  10. शेफाली जी सावन के महीने में घूमते-फिरते आपके ब्लॉग पर आना हुआ. आपकी कविता और लेखनी देख कर दिल गार्डन-गार्डन हो गया. मन के भावो को बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरो कर कविता लिखती है आप. बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं. फर्क मात्र इतना है की आप अपने दिल में उठने वाले भावो से कविता लिखती है और मैं गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.

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  11. achhi bhaasha..behad achhis och...


    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  12. सच्चाई से रूबरू करती रचना.लोग पहले पंखों के उगने का बेसब्री से इन्तजार करते है,फिर बेरहमी से क़तर भी देते हैं.यही जीवन सच है.

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  13. सच्चाई से रूबरू करती रचना.लोग पहले पंखों के उगने का बेसब्री से इन्तजार करते है,फिर बेरहमी से क़तर भी देते हैं.यही जीवन सच है.

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  14. what a deep thought...and an absolute truth...i love to read ur posts..

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  15. बेहतरीन अभिवयक्ति....

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  16. aap sabhi ka bahut bahut shukriya

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  17. mujhe ye nazm bahut acchi lagi hai ..bahut kuch bayaan ho raha hai

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आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे