तू क्यूं नहीं समझती है मां,
मेरी तकलीफ़
मैं इतना बड़ा तो नहीं हुआ
की चल सकूं इस दुनिया में
तेरी ऊंगली थामे बग़ैर
हां वक़्त साथ थोड़ा तजुर्बा ज़रूर हो गया है।
तुम क्यूं नहीं देख पाती मां,
मेरी रातें जागी हुई
अश्कों से भीगी हुई
अनीदिं आंखें
मैं तुझसे तो कभी छुपा ना पाता था
हां वक़्त के साथ थोड़ा संभल गया हूं मैं।
तुम क्यूं नहीं देख पाती मां,
वक़्त के साथ
भागती दौड़ती इस ज़िन्दगी में
भागते भागते
मैं भी एक मशीन बनता जा रहा हूं
हां जिसमें एक नन्हा सा दिल बाकी है
मां फिर से आके बैठ मेरे पास
मेरे सर पे रख दे तेरा हाथ
मुझमें अभी भी कुछ उम्मीद बाकी है
मुझे आज भी तेरा इंतजार है मां।
-शेफाली