August 14, 2009


काश मुझे दो पंख होते
माँ मैं भी उड़ जाती,
दूर देश से दाना लेकर
साँझ ढले घर आती,
रोशन होती साँझ हमारी
आँगन में जलती बाती,
तेरे चूल्हे पर बनती
माँ और दो गरम चपाती,

माँ अगर ऐसा होता तो
कितना अच्छा होता,
अम्मा काश आँखों का
हर सपना सच्चा होता,
और जो नहीं ये हो सकता
तो बस इतना हो जाता,
मैं तेरे आँगन में
एक बेटा बन कर आती,
काश मुझे दो पंख होते
माँ मैं भी उड़ जाती



August 13, 2009

आँखों में बंधे एक की
जब कुछ गांठें खोली तो
हवा का एक खुशबूदार झोंका
पलकों पर बिखरी बूंदों को सुखा गया
उम्मीद की एक किरण जगमगाई
जैसे ज़िन्दगी एक मुट्ठी सांसें लेकर
मरते हुए किसी इंसान के पास आई
और अपनी नन्ही कोमल मुट्ठियों में बंद
सागर की मीठी लहरें
किसी प्यासे पर बरसाई
उस गांठ को खोल कर मैंने
खुद को वापस पाया है
ऐसा लगा की दिल के हजारों सपने
अंगडाई ले कर उठ खड़े हुए
और पूरब के सूर्य की भांति
किरणे फैलाते हुए
हकीक़त की धरती पर कदम रखने लगे
और उन सपनो के उजाले
अंतर्मन के तम को
खत्म करने लगे
Vastu vishesh jaisi dikhti hai
Ye jaruri ni ki waisi hi ho
Shabdon ke aartho ke
Mayne hote hain
Fir kyun hum shabd jal me
Ulajh ke reh jate hain
Kyun nahi shabdon aur vastuon ki
Gahrai ko samajh paten hain
Fir kyun sanson ka chalna
Aur hraday ka dhadakna nahi dikhta
Ya shayad hum arth pardhan duniya main hain
Jahan arthon ka nahi
Arth ka bolbala hai