शब्दों से खेलना बचपन में सीखाया जाता है
मैंने भी सीखा, पहले अक्षरों से शब्द बनाना, फिर शब्दों से वाक्य बनाना,
पर एक चीज़ जो और सीखी वो था शब्दों को एक सार में पिरोना, मैंने तो कुछ खास नहीं किया पर लोग कहते हैं की मेरे द्वारा पिरोये गए शब्द कविताओं की श्रंखला बन जाते हैं
और आज मेरे इन्ही शब्दों से मेरी पहचान है
प्रिय की प्रतीक्षा इतनी असहज तो नहीं होती, हाँ, विरहपूर्ण जरूर होती है ! कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है, मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता, ये न थी हमारी किस्मत कि बिसाल-ए-यार होता.. .. गालिब
प्रिय की प्रतीक्षा इतनी असहज तो नहीं होती, हाँ, विरहपूर्ण जरूर होती है !
ReplyDeleteकहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता,
ये न थी हमारी किस्मत कि बिसाल-ए-यार होता..
.. गालिब
बहुत ही सुंदर और सरल शब्दों में लिखी कविता है ये...सचमुच काबिले तारीफ़...
ReplyDeletethnks vidya
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