शब्दों से खेलना बचपन में सीखाया जाता है
मैंने भी सीखा, पहले अक्षरों से शब्द बनाना, फिर शब्दों से वाक्य बनाना,
पर एक चीज़ जो और सीखी वो था शब्दों को एक सार में पिरोना, मैंने तो कुछ खास नहीं किया पर लोग कहते हैं की मेरे द्वारा पिरोये गए शब्द कविताओं की श्रंखला बन जाते हैं
और आज मेरे इन्ही शब्दों से मेरी पहचान है
November 08, 2010
पत्थर के निवाले
एक नयी बनती कोठी वहां काम करती एक मजदूर माँ और माटी के ढेर से खेलता उसका अबोध बालक अचानक उठा एक इंट मुह में धर लिया उसने माँ ने देखा, मुस्कुराई और मैं सोचती रह गयी कैसे हज़म कर लेते हैं ये बच्चे इंट, कंकड़, पत्थर सब.......... - शेफाली
bahut hi achhi rachna
ReplyDeleteBeautifull :)
ReplyDeletethanks :)
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..!!
ReplyDeleteनयी-पुरानी हलचल से आपका लिंक मिला.
ReplyDeleteसंवेदना से भरी मार्मिक रचना है आपकी...हार्दिक बधाई।
सम्वेदनशील दृष्टि.
ReplyDeleteमन को स्पर्श करती अति भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteआप सब का शुक्रिया
ReplyDeleteBahut sundar abhivyakti shefali ji.
ReplyDeleteApki sundar kavita ke sath mujhe apni kuchh panktiyan yaad aa gayi.
Chahat inme bhi hai
My Blog: Life is just a Life
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