सांझ के साए मन के अंतर में उगते हैं
दरिया दिल की धड़कन के साथ बहते हैं
मन की इस उलझन को सुलझाऊं कैसे
या मैं रो रो कर शोर मचाऊँ कैसे
साथी मेरा सोया है
सुन्दर सपनो खोया खोया है
मैं चीख चीख उसको जगाऊँ कैसे.......
- शेफाली
दरिया दिल की धड़कन के साथ बहते हैं
मन की इस उलझन को सुलझाऊं कैसे
या मैं रो रो कर शोर मचाऊँ कैसे
साथी मेरा सोया है
सुन्दर सपनो खोया खोया है
मैं चीख चीख उसको जगाऊँ कैसे.......
- शेफाली
लिखते रहिये ... शुभकामनाएँ
ReplyDeletebahut sundar likha hai aapne
ReplyDeleteसाथी मेरा सोया है
सुन्दर सपनो खोया खोया है
मैं चीख चीख उसको जगाऊँ कैसे....
vaise jarorrat par apne hi kaam aate hain
jo kaam naa aaye jaroorat par wo apna saathi kaise ho sakta hai
Well said :)
ReplyDelete@ pankaj
ReplyDeleteThanks
@ Alok ji
zindai me kabhi kabhi aise bhi pal aate hain jab aap apno ko apni bhawnayen bata ni sakte aur wo koi antaryami to hote ni jo bin bole samjhen
@P Kay
thanks
Keep it up Sakshi gud work , chk this link for some of my Writings www.shashanksaxena.com
ReplyDeletethanks shashank bt its nt sakshi its shephali
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