वो भी क्या दिन थे
जब हम चाँद का स्वाद चखा करते थे
कभी खीर में देती थी माँ
कभी दूध में घोल देती थी
कभी रोटी के टुकड़े में
दबा कर खिला दिया करती
तब चाँद बहुत मीठा होता था
अब तो बहुत खारी लगती हैं रातें
जब आँखों में सारी रात
जगती हैं रातें
दिन भी कितने फीके लगते हैं अब
बड़े होने पर क्यूँ
बेस्वाद हो जाती है
ज़िन्दगी
- शेफाली
रुमान और हकीकत का फर्क करती रचना !
ReplyDeleteबड़े होने पर क्यूँ
ReplyDeleteबेस्वाद हो जाती है ....
bohot hi pyari kavita... bachpan me lagta hai kab bade honge par bade hokar sab kuch beswad sa lagta hai
शानदार रचना. शुक्रिया.
ReplyDelete--
वात्स्यायन गली
शुक्रिया।
ReplyDeleteसही कहा शेफ़ाली , चँदा मामा दूर के , पूआ पकाए गूड़ के … और न जाने क्या क्या कल्पनाओं ने हम को मीठे मीठे स्वाद चखाए हैं।अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteshefali ji vatvriksh ke liye aapki rachna chahiye rasprabha@gmail.com per......is blog ki jitni tareef karun kam hogi
ReplyDelete"जब हम चाँद का स्वाद चखा करते थे
ReplyDeleteकभी खीर में देती थी माँ
कभी दूध में घोल देती थी
कभी रोटी के टुकड़े में
दबा कर खिला दिया करती
तब चाँद बहुत मीठा होता था"
गागर में सागर. बेमिशाल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए आपको शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति..... ख्यालों की दुनिया से कागज़ पर आई उम्दा रचना ..... खूब
ReplyDeleteबड़े होने पर क्यूँ
ReplyDeleteबेस्वाद हो जाती है
ज़िन्दगी
मुझे लगता है संसार का आवरण हमारी चंचलता को लील लेता है ..और जिन्दगी को बोझिल बना देता है ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
very good blog 'test of life" rajendra kashayap
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2010/12/blog-post_27.html
ReplyDeleteवाह वाह! सुन्दर वर्णन सच्चाई का..
ReplyDeleteअच्छा लगा..
आभार
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeletei don't ve words to express my view bt you jst amazed me by all your stupendous fantastic and mesmerizing words..& u compiled them so gracefully...gud going yr i've gone throgh all ur "shabdh" & they are just amazing :)all the best for the next
ReplyDeleteThanks Utsav :)
ReplyDeleteजिंदगी किसी है ये पहेली हाय कभी लगे खीर तो कभी लगे एम टी आर का उपमा
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 15 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... सपनों से है प्यार मुझे . .
शेफाली जी अच्छी प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteसंगीता जी कि हलचल में सजी और भी अच्छी लगी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
sach kaha aapne...bachpan bachpan kyon na rahta kyon badta jata hai..
ReplyDeletewelcome to my blog :)
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति !
ReplyDeleteदुनिया दारी सारा स्वाद हर जो लेती है....:))
ReplyDeleteअच्छी रचना... सार्थक प्रश्न....
सादर बधाई...
बहुत खूब शेफाली जी।
ReplyDeleteसादर
सुंदर रचना उम्दा पोस्ट ,....
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे