पतंग
कलम की डोर थाम
जब कल्पनाएँ उडती हैं
तो शब्दों की हवाएं
उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
उठाती हैं
और अंततः
कविताओं के आसमान से
मिलाती हैं
कलम की डोर थाम
जब कल्पनाएँ उडती हैं
तो शब्दों की हवाएं
उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
उठाती हैं
और अंततः
कविताओं के आसमान से
मिलाती हैं
कलम की डोर थाम
ReplyDeleteजब कल्पनाएँ उडती हैं
तो शब्दों की हवाएं
उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
उठाती हैं
और अंततः
कविताओं के आसमान से
मिलाती हैं
पर
कलम की डोर थाम
जब भावनायें बहती हैं
तो शब्द
शब्द नहीं होते
वो हँसी होते हैं किसी लब की
आँसू होते हैं किसी पलक का
और अंततः मिला देते हैं
एक दिल को
दूसरे दिल से...
कविता की टिप्पणी कविता से ही लिख रहा हूँ, आशा है, पसन्द आयेगी...
bashut badhiya...
ReplyDeleteman mera bhi kar raha,
karun saiir aakash,
tham kalam kuch likh daalun,
jaise khila palaash.
@ नीरज जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद, एक कविता को कविता की नज़र से देख कर अच्छा लगा
ReplyDelete@ विजोय धन्यवाद
हाँ कलम और सोच का मिलन ही कविता है.. सही कहा आपने...
ReplyDeleteतीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
आभार
बिलकुल नए-से प्रतीक लेकर
ReplyDeleteचंद ही लफ़्ज़ों में
मनभावन कविता कही है आपने .
वाह !!
@prateek & daanish
ReplyDeleteThanks a lot
खूबसूरत ...... कमाल की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeletedi u r soooooooooooooo great yar. mere ghar me writer hain muje pata tha but itne bade wale honge pata ni tha..................
ReplyDeletewow yar............... i cant say anything.
ReplyDeletethanks bhai
ReplyDeleteShefali ji,
ReplyDeleteachchhi rachna ke liye badhaai.
bahut bahut shukriya chakresh ji
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