काश मुझे दो पंख होते
माँ मैं भी उड़ जाती,
दूर देश से दाना लेकर
साँझ ढले घर आती,
रोशन होती साँझ हमारी
आँगन में जलती बाती,
तेरे चूल्हे पर बनती
माँ और दो गरम चपाती,
माँ अगर ऐसा होता तो
कितना अच्छा होता,
अम्मा काश आँखों का
हर सपना सच्चा होता,
और जो नहीं ये हो सकता
तो बस इतना हो जाता,
मैं तेरे आँगन में
एक बेटा बन कर आती,
काश मुझे दो पंख होते
माँ मैं भी उड़ जाती
quite similar to a flop movie of Rani Mukherjee's song. or is it the same.
ReplyDeletecool...
accha hai....bahut accha hai......
ReplyDeleteHmm, Kalpana to achchhi hai but you still have a little pinch of being a girl !! Not fair !! You know, you are special !
ReplyDeleteIn childhood you would have learned this poem by Ayodhya singh upadhyay "Hariaudh" : Ek boond (http://www.geeta-kavita.com/hindi_sahitya.asp?id=373)
so, dear, What you are, is special itself !
And yes, Nice poem !
Niraj
thanks neeraj sir
ReplyDeleteachchhi rachna hai.. dil chhuu leti hai aisi rachnaye..
ReplyDeleteper I tnink thodi si aur jarurat hai kahina kahi feeling ki
manoranjan ji
ReplyDeletedhanyawad, koshish kar rahi hun kamiyan dur karne ki
nice one yaar... tujhe to main pehle se hi guru maan chuka hoon. :)
ReplyDelete@ amit
ReplyDeleteoh bas oye
very nice expression....
ReplyDeletebahut hi sundar
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeletebhavpoorna prastuti
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई...
बहुत सुन्दर विचारो को संजोया है।
ReplyDeleteयशवंत जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए
ReplyDeleteप्यार और स्नेह के लिए सबका धन्यवाद