
शब्दों से खेलना बचपन में सीखाया जाता है मैंने भी सीखा, पहले अक्षरों से शब्द बनाना, फिर शब्दों से वाक्य बनाना, पर एक चीज़ जो और सीखी वो था शब्दों को एक सार में पिरोना, मैंने तो कुछ खास नहीं किया पर लोग कहते हैं की मेरे द्वारा पिरोये गए शब्द कविताओं की श्रंखला बन जाते हैं और आज मेरे इन्ही शब्दों से मेरी पहचान है
July 04, 2014
June 26, 2014
रिश्तों की चटकती कड़ियाँ
संभालोगे ना तो बिखर जाएँगी
रेट की तरह हाथों से फिसल जाएंगी
सातों आसमान सा विशाल लगता है
रिश्तों का हर मंज़र सवाल लगता है
ज़िन्दगी के आँचल तले
पलते रहेंगे ये
हमारे बनाये साँचें में
ढलते रहेंगे ये
सारे सवालों के जवाब ढूँढना
कानों में गूंजती आवाज़ ढूँढना
एक साथी की तलाश हो गर तो
मुझे तुम अपने आस पास ढूँढना
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