August 13, 2009

आँखों में बंधे एक की
जब कुछ गांठें खोली तो
हवा का एक खुशबूदार झोंका
पलकों पर बिखरी बूंदों को सुखा गया
उम्मीद की एक किरण जगमगाई
जैसे ज़िन्दगी एक मुट्ठी सांसें लेकर
मरते हुए किसी इंसान के पास आई
और अपनी नन्ही कोमल मुट्ठियों में बंद
सागर की मीठी लहरें
किसी प्यासे पर बरसाई
उस गांठ को खोल कर मैंने
खुद को वापस पाया है
ऐसा लगा की दिल के हजारों सपने
अंगडाई ले कर उठ खड़े हुए
और पूरब के सूर्य की भांति
किरणे फैलाते हुए
हकीक़त की धरती पर कदम रखने लगे
और उन सपनो के उजाले
अंतर्मन के तम को
खत्म करने लगे

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आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे