March 31, 2011


पतंग


कलम
की डोर थाम
जब कल्पनाएँ उडती हैं
तो शब्दों की हवाएं
उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
उठाती हैं
और अंततः
कविताओं के आसमान से
मिलाती हैं

13 comments:

  1. कलम की डोर थाम
    जब कल्पनाएँ उडती हैं
    तो शब्दों की हवाएं
    उन्हें ऊँचा, और ऊँचा
    उठाती हैं
    और अंततः
    कविताओं के आसमान से
    मिलाती हैं
    पर
    कलम की डोर थाम
    जब भावनायें बहती हैं
    तो शब्द
    शब्द नहीं होते
    वो हँसी होते हैं किसी लब की
    आँसू होते हैं किसी पलक का
    और अंततः मिला देते हैं
    एक दिल को
    दूसरे दिल से...

    कविता की टिप्पणी कविता से ही लिख रहा हूँ, आशा है, पसन्द आयेगी...

    ReplyDelete
  2. bashut badhiya...
    man mera bhi kar raha,
    karun saiir aakash,
    tham kalam kuch likh daalun,
    jaise khila palaash.

    ReplyDelete
  3. @ नीरज जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद, एक कविता को कविता की नज़र से देख कर अच्छा लगा

    @ विजोय धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. हाँ कलम और सोच का मिलन ही कविता है.. सही कहा आपने...

    तीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
    आभार

    ReplyDelete
  5. बिलकुल नए-से प्रतीक लेकर
    चंद ही लफ़्ज़ों में
    मनभावन कविता कही है आपने .
    वाह !!

    ReplyDelete
  6. @prateek & daanish

    Thanks a lot

    ReplyDelete
  7. खूबसूरत ...... कमाल की अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  8. di u r soooooooooooooo great yar. mere ghar me writer hain muje pata tha but itne bade wale honge pata ni tha..................

    ReplyDelete
  9. wow yar............... i cant say anything.

    ReplyDelete
  10. Shefali ji,

    achchhi rachna ke liye badhaai.

    ReplyDelete
  11. bahut bahut shukriya chakresh ji

    ReplyDelete

आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे