मेरे शब्द आज बीमार हैं,
तबियत कुछ भारी सी है,
आज खिलखिलाते नहीं,
न जाने क्यूँ रो रहे हैं,
कहीं दर्द है शायद.....
शब्दों से खेलना बचपन में सीखाया जाता है मैंने भी सीखा, पहले अक्षरों से शब्द बनाना, फिर शब्दों से वाक्य बनाना, पर एक चीज़ जो और सीखी वो था शब्दों को एक सार में पिरोना, मैंने तो कुछ खास नहीं किया पर लोग कहते हैं की मेरे द्वारा पिरोये गए शब्द कविताओं की श्रंखला बन जाते हैं और आज मेरे इन्ही शब्दों से मेरी पहचान है