रिश्तों की चटकती कड़ियाँ
संभालोगे ना तो बिखर जाएँगी
रेट की तरह हाथों से फिसल जाएंगी
सातों आसमान सा विशाल लगता है
रिश्तों का हर मंज़र सवाल लगता है
ज़िन्दगी के आँचल तले
पलते रहेंगे ये
हमारे बनाये साँचें में
ढलते रहेंगे ये
सारे सवालों के जवाब ढूँढना
कानों में गूंजती आवाज़ ढूँढना
एक साथी की तलाश हो गर तो
मुझे तुम अपने आस पास ढूँढना
good to see you shefali
ReplyDeletewelcome back.....
बहुत सुन्दर रचना...
अनु
शुक्रिया अनु जी
Deleteवाह..बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteशुक्रिया सर
DeleteBahut Umda.....
ReplyDeleteशुक्रिया मोनिका जी
Deleteखुबसूरत अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता जी
DeleteSunder rachna
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteशुक्रिया संजय जी
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