May 20, 2010

कथाकार


मैं एक कथाकार हूँ
और कागज मेरा आंगन है
जब मैं कलम का झुला
इस आंगन के पेड़ों पर डालता हूँ
तब नन्हे मुन्ने शब्द
आँगन में खेलने आ जाते हैं
वो हँसते हैं, गुनगुनाते हैं
लड़ते झगड़ते भी हैं
पर मैं ये देख के हैरान हूँ
कि कैसे लड़ते झगड़ते भी
वो एक हो कर
कथा, कहानी और कविताओं का
सुनहरा रूप ले लेते हैं



1 comment:

  1. kya baat hai ..aaj aap ke blog ki kai rachnaayen padhi...ekdum swachand abhivyakti ki dhani hain aap...bahut badhaai..

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आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे