
क्या करूँ इन संवेदनाओं का
क्या होगा
एन एहसासों से
जिनसे चुभन बढती है
अकेलेपन का अँधेरा
फैल जाता है
जीवन का खालीपन
और गहराता है
लोग सांत्वना के
दो बोल बोलते हैं
और हार का एहसास
बढ़ा देते हैं
क्यूँ न,
सुनहला, रत्न जडित
एक मुखौटा ओढ़ लूँ
सुना है इस दुनिया में
मुखौटे वालों की
इज्ज़त बहुत है
awsm....very true...
ReplyDeleteek mukhuta mere liye bhi kyuki mere ko ye wala mukhauta pasand hai
ReplyDeleteएक बहुत ही खूबसूरत रचना...आपको दाद .....
ReplyDelete@ संत थंक्स
ReplyDelete@ प्रकाश जी बिलकुल, आपके लिए भिजवा देंगे
@ हर्ष जी शक्रिया
काश चेहरे सच में मुखोटे होते.....
ReplyDeleteकाश चेहरे सच में मुखोटे होते.....
ReplyDeleteचेहरे अगर मुखौटे होते
ReplyDeleteतो मुखौटों के पीछे चेहरे छुपाने की क्या जरुरत
आपने सही सुना है
ReplyDeleteऔर लोग एक नहीं कई कई मुखौटे लगाये होते हैं,
घर में अलग, समाज में अलग, दोस्तों में अलग, हर परिस्थिति के लिए अलग अलग मुखौटे !
और रिश्तों को निभाने में कभी कभी ये मुखौटे हमारी बहुत मदद भी करते हैं
ReplyDeleteशुक्रिया मनु जी
ज़िंदगी में दिखावा करना भी बहुत ज़रुरी है ... हर इंसान न जाने कितने मुखौटे लगाये रहता है ... हार का एहसास न हो तो हंसी का मुखौटा लगाना ही पड़ता है ..बहुत भावप्रवण रचना
ReplyDeleteशक्रिया संगीता दीदी
ReplyDeleteठीक सुना है ...
ReplyDeleteमुखौटों वालों की ही ...इज्जत है !पर अपने से कैसे ...छुपोगे ?
खुश और स्वस्थ रहो !
मान-सम्मान,स्नेह का आभार....
मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletemere blog par aake hauslaafzai ka shukriya :)
ReplyDeleteक्यूँ न,
ReplyDeleteसुनहला, रत्न जडित
एक मुखौटा ओढ़ लूँ
सुना है इस दुनिया में
मुखौटे वालों की
इज्ज़त बहुत है
वर्तमान का यथार्थ है आपकी कविता में .भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
शुक्रिया वर्षा जी
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteshukriya :)
ReplyDeleteक्या करूँ इन संवेदनाओं का
ReplyDeleteक्या होगा
एन एहसासों से
जिनसे चुभन बढती है
अकेलेपन का अँधेरा
फैल जाता है
जीवन का खालीपन
और गहराता है
लोग सांत्वना के
दो बोल बोलते हैं
और हार का एहसास
बढ़ा देते हैं ... samvedna hi phir jeetne ka manobal dete hain ... hai n ?
sahi kaha didi
ReplyDeleteक्यूँ न,
ReplyDeleteसुनहला, रत्न जडित
एक मुखौटा ओढ़ लूँ
सुना है इस दुनिया में
मुखौटे वालों की
इज्ज़त बहुत है
sach hi kaha hai aapne ye duniya iasi hai jo jaisa hai use waisa pasand nahi krti , ...........aaj mukhota aadmi ki pehchan ban gaya hai .wo khud bhul gaya hai ki wo kya hai .wo apni nahi mukhote ki jindagi ji raha hai .........aapki is behtreen prastuti ke liye hardik badhai
aapka bahut shukriya amrendra ji
ReplyDeleteहार का एहसास तो होना ही चाहिए, तभी तो एक नई शुरूआत हो सकेगी जीत के लिए ... ।
ReplyDeleteबुरा मत मानियेगा शेफाली जी, आखिरी की छ: पंक्तियां ही असल में कविता है।
सुन्दर प्रयास.
बहुत अच्छे तरीके से भावनाएं व्यक्त की है शेफाली..बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDelete