September 04, 2011

मुखौटा





क्या करूँ इन संवेदनाओं का
क्या होगा
एन एहसासों से
जिनसे चुभन बढती है
अकेलेपन का अँधेरा
फैल जाता है
जीवन का खालीपन
और गहराता है
लोग सांत्वना के
दो बोल बोलते हैं
और हार का एहसास
बढ़ा देते हैं
क्यूँ न,
सुनहला, रत्न जडित
एक मुखौटा ओढ़ लूँ
सुना है इस दुनिया में
मुखौटे वालों की
इज्ज़त बहुत है

26 comments:

  1. ek mukhuta mere liye bhi kyuki mere ko ye wala mukhauta pasand hai

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  2. एक बहुत ही खूबसूरत रचना...आपको दाद .....

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  3. @ संत थंक्स
    @ प्रकाश जी बिलकुल, आपके लिए भिजवा देंगे
    @ हर्ष जी शक्रिया

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  4. काश चेहरे सच में मुखोटे होते.....

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  5. काश चेहरे सच में मुखोटे होते.....

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  6. चेहरे अगर मुखौटे होते
    तो मुखौटों के पीछे चेहरे छुपाने की क्या जरुरत

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  7. आपने सही सुना है
    और लोग एक नहीं कई कई मुखौटे लगाये होते हैं,
    घर में अलग, समाज में अलग, दोस्तों में अलग, हर परिस्थिति के लिए अलग अलग मुखौटे !

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  8. और रिश्तों को निभाने में कभी कभी ये मुखौटे हमारी बहुत मदद भी करते हैं
    शुक्रिया मनु जी

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  9. ज़िंदगी में दिखावा करना भी बहुत ज़रुरी है ... हर इंसान न जाने कितने मुखौटे लगाये रहता है ... हार का एहसास न हो तो हंसी का मुखौटा लगाना ही पड़ता है ..बहुत भावप्रवण रचना

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  10. शक्रिया संगीता दीदी

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  11. ठीक सुना है ...
    मुखौटों वालों की ही ...इज्जत है !पर अपने से कैसे ...छुपोगे ?
    खुश और स्वस्थ रहो !
    मान-सम्मान,स्नेह का आभार....

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  12. मेरे ब्लॉग पर आकर टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  14. mere blog par aake hauslaafzai ka shukriya :)

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  15. क्यूँ न,
    सुनहला, रत्न जडित
    एक मुखौटा ओढ़ लूँ
    सुना है इस दुनिया में
    मुखौटे वालों की
    इज्ज़त बहुत है

    वर्तमान का यथार्थ है आपकी कविता में .भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।

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  16. शुक्रिया वर्षा जी

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  17. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  18. क्या करूँ इन संवेदनाओं का
    क्या होगा
    एन एहसासों से
    जिनसे चुभन बढती है
    अकेलेपन का अँधेरा
    फैल जाता है
    जीवन का खालीपन
    और गहराता है
    लोग सांत्वना के
    दो बोल बोलते हैं
    और हार का एहसास
    बढ़ा देते हैं ... samvedna hi phir jeetne ka manobal dete hain ... hai n ?

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  19. क्यूँ न,
    सुनहला, रत्न जडित
    एक मुखौटा ओढ़ लूँ
    सुना है इस दुनिया में
    मुखौटे वालों की
    इज्ज़त बहुत है
    sach hi kaha hai aapne ye duniya iasi hai jo jaisa hai use waisa pasand nahi krti , ...........aaj mukhota aadmi ki pehchan ban gaya hai .wo khud bhul gaya hai ki wo kya hai .wo apni nahi mukhote ki jindagi ji raha hai .........aapki is behtreen prastuti ke liye hardik badhai

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  20. हार का एहसास तो होना ही चाहिए, तभी तो एक नई शुरूआत हो सकेगी जीत के लिए ... ।
    बुरा मत मानियेगा शेफाली जी, आखिरी की छ: पंक्तियां ही असल में कविता है।
    सुन्‍दर प्रयास.

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  21. बहुत अच्छे तरीके से भावनाएं व्यक्त की है शेफाली..बधाई.

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  22. बहुत बहुत शुक्रिया

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आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे