शब्दों से खेलना बचपन में सीखाया जाता है
मैंने भी सीखा, पहले अक्षरों से शब्द बनाना, फिर शब्दों से वाक्य बनाना,
पर एक चीज़ जो और सीखी वो था शब्दों को एक सार में पिरोना, मैंने तो कुछ खास नहीं किया पर लोग कहते हैं की मेरे द्वारा पिरोये गए शब्द कविताओं की श्रंखला बन जाते हैं
और आज मेरे इन्ही शब्दों से मेरी पहचान है
July 13, 2011
थक कर बैठ गया है वो रोज़ सपनो के पुर्ज्जे जोड़ता था शायद कल की उम्मीद में उसकी आँखों में अब भी चमक बाकी है थका है वो पर हरा नहीं है
sapno ke saath jo hota hai wah haarta nahi
ReplyDeletemera comment kaha hai?
ReplyDeleteyahan hai di :)
ReplyDeleteshukriya
वाह ..बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
sangeeta didi bahut bahut shukriya
ReplyDeletemaine word verification hata diya hai :)
वाह......
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
थका है वो पर
ReplyDeleteहारा नहीं है
जीवन को प्रेरित करने वाली कविता ....आपका आभार
@ vivek & kewal ji
ReplyDeleteshukriya
bahut khubsurat kaha hai....sundar
ReplyDelete@ kumar
ReplyDeletedhanyawad