August 13, 2009

3 comments:

  1. प्रिय की प्रतीक्षा इतनी असहज तो नहीं होती, हाँ, विरहपूर्ण जरूर होती है !
    कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है,
    मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता,
    ये न थी हमारी किस्मत कि बिसाल-ए-यार होता..
    .. गालिब

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर और सरल शब्दों में लिखी कविता है ये...सचमुच काबिले तारीफ़...

    ReplyDelete

आपके अनमोल वक़्त के लिए धन्यवाद्
आशा है की आप यूँ ही आपना कीमती वक़्त देते रहेंगे